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क्या है वट सावित्री व्रत की कथा, व्रत का कैसे करें पारण, पायें सम्पूर्ण फल

वट सावित्री व्रत का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। महिलाएं अपने पति की लम्बी उम्र, जीवन रक्षा और सुखद वैवाहिक जीवन की कामना करते हुए यह व्रत रखती हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि के दिन वट सावित्री व्रत रखा जाता है। इस साल यह व्रत 19 मई शुक्रवार के दिन किया जा रहा है। इसी दिन शनि जयंती भी मनाई जा रही है।इस व्रत को करने के पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है। जिसके अनुसार, सावित्री ने अपनी सूझ-बूझ से यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी। तभी से महिलाएं इस व्रत को करती आ रही हैं।इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। साथ ही उसकी परिक्रमा करते हुए वृक्ष के चारों ओर मंगल धागा यानी कलावा बांधती हैं।
क्या है वट सावित्री व्रत की कथा, व्रत का कैसे करें पारण, पायें सम्पूर्ण फल

वट सावित्री व्रत का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। महिलाएं अपने पति की लम्बी उम्र, जीवन रक्षा और सुखद वैवाहिक जीवन की कामना करते हुए यह व्रत रखती हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि के दिन वट सावित्री व्रत रखा जाता है। इस साल यह व्रत 19 मई शुक्रवार के दिन किया जा रहा है। इसी दिन शनि जयंती भी मनाई जा रही है।इस व्रत को करने के पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है। जिसके अनुसार, सावित्री ने अपनी सूझ-बूझ से यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी। तभी से महिलाएं इस व्रत को करती आ रही हैं।इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। साथ ही उसकी परिक्रमा करते हुए वृक्ष के चारों ओर मंगल धागा यानी कलावा बांधती हैं।

वट सावित्री व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार मद्रदेश में अश्वपति नाम के धर्मात्मा राजा का राज था। उनकी कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति के लिए राजा ने यज्ञ करवाया, जिसके शुभ फल से कुछ समय बाद उन्हें एक कन्या की प्राप्ति हुई, इस कन्या का नाम सावित्री रखा गया। जब सावित्री विवाह योग्य हुई तो उन्होंने द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को अपने पतिरूप में वरण किया। सत्यवान के पिता भी राजा थे परंतु उनका राज-पाट छिन गया था, जिसके कारण वे लोग बहुत ही द्ररिद्रता में जीवन व्यतीत कर रहे थे। सत्यवान के माता-पिता की भी आंखों की रोशनी चली गई थी। सत्यवान जंगल से लकड़ी काटकर लाते और उन्हें बेचकर जैसे-तैसे अपना गुजारा करते थे।

जब सावित्री और सत्यवान के विवाह की बात चली तब नारद मुनि ने सावित्री के पिता राजा अश्वपति को बताया कि सत्यवान अल्पायु हैं और विवाह के एक वर्ष पश्चात ही उनकी मृत्यु हो जाएगी। जिसके बाद सावित्री के पिता नें उन्हें समझाने के बहुत प्रयास किए परंतु सावित्री यह सब जानने के बाद भी अपने निर्णय पर अडिग रही। अंततः सावित्री और सत्यवान का विवाह हो गया। इसके बाद सावित्री सास-ससुर और पति की सेवा में लग गई।

समय बीतता गया और वह दिन भी आ गया जो नारद मुनि ने सत्यवान की मृत्यु के लिए बताया था। उसी दिन सावित्री भी सत्यवान के साथ वन को गई। वन में सत्यवान लकड़ी काटने के लिए जैसे ही पेड़ पर चढ़ने लगा कि उसके सिर में असहनीय पीड़ा होने लगी, कुछ वह सावित्री की गोद में सिर रखकर लेट गया। कुछ ही समय में उनके समक्ष अनेक दूतों के साथ स्वयं यमराज खड़े हुए थे। यमराज सत्यवान की आत्मा को लेकर दक्षिण दिशा की ओर चलने लगे, पतिव्रता सावित्री भी उनके पीछे चलने लगी।

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